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फिर लौट आए हैं बैडमैन

अब आपको पर्दे पर हो सकता है प्राण और अमरीश पुरी जैसे खलनायक नजर ना आ रहे हों पर ऐसा नहीं है कि इस तरह के किरदार अब पर्दे से बिलकुल गुम हो गए हैं. हाल में कुछ ऐसी फिल्में आई हैं और कुछ आने वाली हैं, जिनमें गायब हुए खलनायक एक बार फिर से दमदार अंदाज में नजर आने लगे हैं. हां, यह जरूर हुआ है कि अब खलनायक का किरदार निभाने वाला कोई खास कलाकार नहीं होता, जैसा पहले की फिल्मों में दिखता था. तब फिल्मों में खलनायक की भूमिका निभाने वाले कलाकार अलग होते थे. खलनायकों और नायकों के बीच की जो दीवार थी अब लगता है अभिनय से उसे गिरा दिया गया है.


आठवें दशक तक दमदार खल-चरित्र खूब देखने को मिलते थे. इनमें कन्हैयालाल, के एन सिंह, मदनपुरी, प्राण, जीवन, अजीत, रंजीत, प्रेम चोपड़ा, अमजद खान, अमरीश पुरी, कादर खान, गोगा कपूर, सदाशिव अमराव पुरकर, शक्ति कपूर, गुलशन ग्रोवर आदि के नाम चर्चा में रहे.


इन खलनायकों की एक खूबी इनके संवाद देने की कला भी होती थी. इन खलनायकों ने हिन्दी सिनेमा जगत को कई ऐसे संवाद दिए जिसे लोगों ने बरसों तक अपने जहन में रखा. चाहे वह फिल्म शोले का गब्बर सिंह हो या शाकाल हर किसी ने बॉलिवुड में ऐसे डायलॉग बोले हैं जो लोगों को बरसों तक याद रहेंगे.


लेकिन आजकल के खलनायक अपनी संवाद कला पर नहीं बल्कि शरीर कला यानि बॉडी पर ज्यादा ध्यान देते हैं. खलनायक का मतलब आज एक ऐसा शख्स हो गया है जो शरीर से ऐसा हो जिसे देखकर हीरो के पसीने छूट जाएं. अब आप अग्निपथ के विलेन “कांचा” को ही देख लो.


हिन्दी सिनेमा जगत में खलनायकों का इतिहास

हमारी फिल्मों की शुरुआत ही नायक और खलनायक के द्वंद्व के साथ हुई है. एक लंबा अरसा फिल्मों में दमदार खलनायकों के नाम रहा. फिल्मों में हीरो के बराबर भूमिकाएं खलनायकों ने हासिल कीं. आज भी शोले में गब्बर सिंह के डायलॉग सबसे ज्यादा याद किए जाते हैं. प्रेम कहानियों के दौर में परंपरागत विलेन की जरूरत और प्रासंगिकता दोनों ही कम हो चली थी, इसलिए फिल्मी पर्दे से विलेन गायब हो गए थे.


इस दौर में सूरज बड़जात्या, करण जौहर और आदित्य चोपड़ा जैसे फिल्मकारों ने पारिवारिक सिनेमा की रचना की, जिसमें उस तरह के खलनायकों की न तो जरूरत थी और न ही गुंजाइश लेकिन गजनी, सिंघम, दबंग, वांटेड और हालिया रिलीज अग्निपथ ने एक बार फिर से पारंपरिक खलनायक को जीवित कर दिया है. माना जा रहा है कि क्रॉसओवर सिनेमा का दौर जाने के बाद एक बार फिर सॉफ्ट, पारिवारिक और भावनात्मक फिल्मों की बजाय दर्शकों का ध्यान फिल्मों के पारंपरिक ढांचे यानी हीरो-हीरोइन और खलनायक की तरफ गया है.


कुल मिलाकर, एक बार फिर दमदार किस्म के खलनायकों का दौर फिल्मों में लौट रहा है और खल-चरित्र को आज अभिनेता चुनौती के रूप में ले रहे हैं.


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