Reality of Sperm Donation
पिछले दिनों बॉलिवुड में “विक्की डोनर” नामक बेहद सफल और हिट फिल्म पर्दे पर आई. फिल्म के कॉंसेप्ट और फिल्म की कहानी को सबने बहुत पसंद किया. इस फिल्म के बाद जनता में “विक्की डोनर” जैसा बनने वालों की संख्या में बेइंतहा वृद्धि देखने को मिली. कई लोग अस्पतालों में स्पर्म डोनेट करने के लिए लाइनों में लगने लगे. लेकिन क्या आप जानते हैं जो इस फिल्म में दिखाया गया वह मात्र एक कहानी थी असली विक्की डोनरों की कहानी तो बहुत ही अलग है.
विक्की डोनर ने बदला ट्रेंड
एक अनुमान के मुताबिक “विक्की डोनर” के बाद स्पर्म बैंक में डोनेशन के लिए जहां पहले तीन से चार फोन कॉल आते थे, वहीं इस फिल्म के रिलीज होने के बाद औसतन हर दिन 45 से 50 कॉल आ रहे हैं.
इस फिल्म में अभिनेता को स्पर्म डोनेट करने के लिए हजारों रूपए मिलते हैं और यह क्रिया करने के लिए उसको रूम में कई मैगजीन भी दी जाती हैं. लेकिन असलियत में जमीनी सच्चाई तो यह है कि यह काम करने वालों को मात्र कुछ सौ रुपए मिलते हैं और कुछ नहीं. अगर आप दिल्ली की बात देखेंगे तो यहां स्पर्म डोनेट करने के लिए बने स्पर्म बैंकों में स्पर्म डोनेशन के बदले महज दो से तीन सौ रुपये दिए जाते हैं. इस महंगाई में इतनी रकम से न तो आपका पॉकेट खर्च निकल सकता है और न ही बेरोजगारी की समस्या का हल.
पैसे को लेकर भ्रम न पालें
स्पर्म बैंक वाले खुद मरीज और जरूरतमंद को स्पर्म मात्र 800 से 900 रुपये में मुहैया कराते हैं तो वह भला डोनर को इसके बदले 10 से 15 हजार रुपये कैसे दे सकते हैं. आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) की गाइडलाइन के तहत स्पर्म डोनेट करने पर किसी तरह का भुगतान तय नहीं है. हालांकि डोनेट करने वाले को सेंटर आने-जाने के खर्च के रूप में मात्र दो से तीन सौ रुपये दिए जाते हैं.
क्या है आईसीएमआर की गाइड लाइन
* स्वस्थ और संक्रमण रहित लोग ही स्पर्म डोनेट कर सकते हैं.
* उनकी उम्र 21 से 45 वर्ष के बीच होनी चाहिए.
* तीन महीने के अंतराल पर दोबारा स्पर्म डोनेट कर सकते हैं.
* कुल 10 बार से ज्यादा डोनेट नहीं किया जा सकता.
* डोनर का नाम और पहचान नहीं बताई जाती.
डोनेट से पहले
* इच्छुक डोनर की पहले प्रोफाइल जांच की जाती है, जिसमें पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि, धर्म, रंग, लंबाई, वजन और पेशा शामिल होता है
* इसके बाद डोनर की स्वास्थ्य जांच होती है, जिसमें एचआईवी, थैलीसीमिया, हेपेटाइटिस, संक्रमण के साथ-साथ हार्ट और कैंसर की बीमारी के बारे में भी जांच होती है.
* इसके बाद स्पर्म डोनेशन लिया जाता है.
* डोनेशन के बाद स्पर्म को सेंटर में बने फ्रिज में रखा जाता है.
* छह महीने बाद डोनर की फिर से सभी जांच होती है, क्योंकि अगर बीमारी विंडो पीरियड में हो तो फिर से जांच में इसका पता चल सके.
* इसके बाद ही इच्छुक सेंटर को स्पर्म मुहैया कराया जाता है.
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