Dev Anand Profile in Hindi
“हम दोनों” फिल्म का यह गीत हिन्दी सिनेमा के बेहतरीन गानों में से एक माना जाता है और इसकी वजह है इसका उस शख्स के ऊपर फिल्माया जाना जो इसके हर एक बोल को सार्थक करता हो. यह शख्स कोई और नहीं हिन्दी सिनेमा के सदाबहार अभिनेता देवानंद साहब थे. आज देवानंद साहब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी यादें आज भी हर हिन्दुस्तानी और हिन्दी सिनेमा के दर्शकों के मन में ताजा हैं. कल यानि 26 सितंबर को देवानंद साहब की जयंती है तो चलिए हिन्दी सिनेमा के इस सदाबहार अभिनेता की जिंदगी की कुछ खास बातें जानें.
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Evergreen Dev Anand
फिल्मी पर्दे पर हमेशा रुमानी दिखने वाले देवानंद साहब खुद को हमेशा सदाबहार ही मानते थे और यही वजह रही है कि उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी जहां अन्य सितारे दादा और नाना के किरदार करते हैं वहीं देव साहब ने लीड रोल में ही खुद को पेश किया. उनकी आखिरी फिल्म “चार्जशीट” में भी वह बतौर लीड अभिनेता ही पर्दे पर दिखे. इस फिल्म को करते हुए उनकी उम्र 88 साल की थी.
Death of Dev Anand
अपने चाहने वालों को हमेशा खुश देखने की हसरत ही एक वजह थी जो देवानंद साहब को अपने आखिरी समय में देश से दूर ले गई. देवानंद नहीं चाहते थे कि भारत में उनके चाहने वाले उनका मरा मुंह देखें इसलिए उन्होंने जिंदगी के आखिरी पल लंदन में बिताने का फैसला किया. हर दिल अजीज देव आनंद का 04 दिसंबर, 2011 को लंदन में निधन हो गया था.
Biography of Dev Anand
सदाबहार फिल्म अभिनेता देव आनंद ने हिंदी फिल्म जगत में 1951 की बाजी से लेकर 2011 की चार्जशीट तक छह दशकों का लम्बा सफर तय किया. उम्र को पीछे छोड़ देने वाले देव आनंद ने हिंदी सिनेमा को श्वेत-श्याम युग से तकनीकी रंगीन युग में परिवर्तित होते देखा और अपने पीछे एक ऐसी अनोखी विरासत छोड़ी जो सिनेमाई कार्यो से कहीं आगे निकल चुकी है.
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Life of Dev Anand
देव आनंद की जिंदगी पल-पल बहती कलकल नदी थी. उसमें मोड़ तो खूब आए, लेकिन कभी विराम नहीं आया. अपनी जिंदगी के आखिरी पल तक वह काम करते रहे. काम के प्रति ऐसी श्रद्धा शायद ही किसी इंसान में दिखाई दे. उनके नाम के साथ हमेशा सदाबहार लगा रहा और इस शब्द को उन्होंने अपनी फिल्मों के द्वारा सच भी साबित किया.
Trio of Bollywood
हिन्दी सिनेमा जगत ने अपने चाहने वालों को 50 के दशक में अभिनेताओं की ऐसी तिकड़ी दी थी जिसकी तुलना करना ना कभी संभव हुआ ना होगा. दिलीप कुमार सरीखे ट्रेजडी किंग और राज कपूरकी तरह रोमांस और मसखरी का जादू उन दिनों दर्शकों के दिल पर जादू बनकर छाया हुआ था और उसी समय कदम रखा देवानंद साहब ने. देव साहब ने आजादी के बाद देश में उभरे शहरी युवकों का सुंदर प्रतिनिधित्व किया. रोमांच और रोमांस के मिश्रण से उन्होंने रोमांटिक थ्रिलर फिल्में कीं और दिलीप कुमार और राज कपूर के छोड़े गैप को भी भरा. उन्होंने अपने कॅरियर में ‘गाइड’, ‘पेइंग गेस्ट’, ‘बाजी’, ‘ज्वेल थीफ’, ‘सीआइडी’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘अमीर गरीब’, ‘वारंट’, ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ और ‘देस परदेस’ जैसी सुपर हिट फिल्में दीं.
Fashion and Style of Dev Anand
कहते थे देवानंद फैशन को फॉलो नहीं करते थे, फैशन देवानंद साहब को फॉलो करता था. देव आनंद की लोकप्रियता का आलम ये था कि उन्होंने जो भी पहना, जो भी किया वो एक स्टाइल में तब्दील हो गया. फिर चाहे वो उनका बालों पर हाथ फेरने का अंदाज हो या काली कमीज के पहनने का या फिर अपनी अनूठी शैली में जल्दी-जल्दी संवाद बोलने का. आज जितने प्रशंसक सलमान खान के नहीं हैं उससे कहीं ज्यादा कभी देवानंद के माने जाते थे.
Dev Anand in Politics
सिनेमा जगत में सदाबहार माने जाने वाले देवानंद साहब ने कभी राजनीति में भी कदम रखा था. मौका था देश में इमरजेंसी का. जून, 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाने का एलान किया तो देव आनंद ने फिल्म जगत के अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर उसका पुरजोर विरोध किया था. बाद में जब आपातकाल खत्म हुआ और देश में चुनावों की घोषणा हुई, तो उन्होंने अपने प्रशंसकों के साथ जनता पार्टी के चुनाव प्रचार में भी हिस्सा लिया.
बाद में उन्होंने नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया के नाम से एक राजनीतिक दल की भी स्थापना की, लेकिन कुछ समय बाद उसे भंग कर दिया.
एक जमाना वह था, जब देव आनंद की तूती बोलती थी. इसलिए उनकी लोकप्रियता की ऊंचाई की कल्पना आज के अभिनेता नहीं कर सकते. अपने आकर्षण से किंवदंती बन चुके देव आनंद ने दशकों तक दर्शकों के दिलों पर राज किया है. आज चाहे देवानंद जी हमारे बीच ना हों लेकिन उनकी यादें आज भी हमारे बीच ही हैं.
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