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‘अंतिम संगीत ताजमहल को दिया’

naushadमुगल-ए-आजम और ताजमहल ऐसे नाम हैं जिनका नाम सुनते ही लोगों के दिल और दिमाग में हजारों बातें एक साथ गूंजने लगती हैं. ताजमहल और मुगल-ए-आजम की कहानी इतनी मशहूर रही है कि फिल्मी पर्दे पर भी इनकी प्रेम की दास्तां को उतारा गया है. बॉलीवुड में तमाम फिल्में सुपरहिट रही हैं पर बहुत कम फिल्में ऐसी हैं जिनका संगीत लोगों के दिल और दिमाग में आज भी गूंजता हो.  मुगल-ए-आज़म, बैजू बावरा, कोहिनूर और ताजमहल जैसी सुपरहिट फिल्मों का संगीत देने वाले महान संगीतकार नौशाद अली थे जिनके संगीत को आज भी लोग याद किया करते हैं. जब भी दुनिया की महफिल में सभी संगीतकारों को याद किया जाएगा तो नौशाद का नाम आर.डी. बर्मन, रहमान आदि के साथ लिया जायेगा.

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‘मोहे पनघट पे नंद लाल’, ‘मधुबन में राधिका नाचे रे..’, ‘अपनी ज़ुल्फें मेरे’, ‘दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा’, ‘नैन लड़ जई हैं’, और ‘मोहे पनघट पे नंदलाल’ जैसे गीतों को संगीत नौशाद ने ही दिया था.


मोहम्मद रफी तक को नौशाद ने बनाया

नौशाद का नाम उन संगीतकारों में से एक हैं जिन्होंने स्वयं तो अपना पूरा जीवन संगीत के नाम कर ही दिया और ऐसे गायक दुनिया को दिए जिनके नाम को आज दुनिया भर में जाना जाता हैं. एक दिन एक निर्देशक साथ में एक लड़के को लिए नौशाद के पास गए और बोले कि ‘भाई, इस लड़के के लिए कोई गुंजाइश निकल सकती है क्या? नौशाद अली ने सहज भाव से कहा, ‘फिलहाल तो कोई गुंजाइश नहीं है. हाँ, इतना जरूर है कि मैं इनको किसी समूह में गवा सकता हूँ.’ फिर क्या था उस  लड़के ने ‘हाँ’ कर दी,

जिस गीत में उस लड़के ने गाया उस गीत के बोल थे: ‘हिन्दू हैं हम हिन्दुस्तां हमारा, हिन्दू-मुस्लिम की आँखों का तारा’. इसमें सभी गायकों को लोहे के जूते पहनाए गए, क्योंकि गाते समय पैर पटक-पटककर गाना था ताकि जूतों की आवाज का इफेक्ट आ सके पर उस लड़के के जूते टाइट थे. गाने की समाप्ति पर लड़के ने जूते उतारे तो उसके पैरों में छाले पड़ गए थे. यह सब देख रहे नौशाद ने उस लड़के के कंधे पर हाथ रखकर कहा, ‘जब जूते टाइट थे तो तुम्हें बता देना था’. नौशाद को जबाव देते हुए उस लड़के ने कहा कि ‘आपने मुझे काम दिया, यही मेरे लिए बड़ी बात है’. तब नौशाद ने उस लड़के की संगीत के प्रति लगाव देखते हुए कहा था कि ‘एक दिन तुम महान गायक बनोगो’ और भविष्य में यही लड़का मोहम्मद रफी के नाम से जाना गया. सच ही कहा गया है कि एक गुणी संगीतकार की नजर भविष्य के गुणी संगीतकारों या गायकों को खोज ही लेती है.

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naushad profile‘अंतिम संगीत ताजमहल को दिया’

नौशाद जैसे महान संगीतकार ने 2006 में बनी फिल्म ‘ताजमहल’ को अंतिम संगीत दिया था. ‘सुनहरी मकड़ी’ नाम की फिल्म में नौशाद को हारमोनियम बजाने का अवसर मिला था पर अफसोस यह था कि यह फिल्म पूरी नहीं हो सकी थी पर किसे पता था कि यहीं से नौशाद का संग़ीत का सुनहरा सफर शुरू हो जाएगा. इसी बीच गीतकार दीनानाथ मधोक से नौशाद की मुलाकात हुई जहां उनका परिचय फिल्म इंडस्ट्री के अन्य लोगों से करवाया गया. 1940 में बनी ‘प्रेम नगर’ में नौशाद को पहली बार स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशन करने का मौका मिला. इसके बाद फिल्म ‘स्टेशन मास्टर’ का संगीत भी सफल रहा. ऐसा लग रहा था कि नौशाद और उनके संगीत का सिलसिला अब रुकने नहीं वाला हैं. ‘रतन’ फिल्म के गीत अँखिया मिला के…, ‘मेला’ फिल्म का ये जिंदगी के मेले’, बैजू बावरा’  का ‘तू गंगा की मौज’ और ‘मदर इंडिया’ का ‘ओ गाडीवाले’ , मुगल-ए-आज़म , कोहिनूर और ताजमहल जैसे सुपरहिट फिल्मों में नौशाद ने संगीत दिया था.

नौशाद को फिल्मों में बेहतर संगीत देने के लिए जितने भी पुरस्कार दिए गए वो हमेशा कम ही रहेंगे क्योंकि किसी भी गुणी और महान काम का कोई भी पुरस्कार हो ही नहीं सकता हैं. इस महान संगीतकार को भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया था और इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी, लता मंगेशकर पुरस्कार, फिल्म फेयर पुरस्कार, अमीर खुसरो पुरस्कार आदि कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था.


नौशाद की एक खास बात

नौशाद के एक महान संगीतकार बनने के पीछे एक खास बात यह थी कि वो हमेशा सुधार में विश्वास रखते थे और अपने अंतिम दिनों तक वे यही कहते रहे थे कि ‘मुझे आज भी ऐसा लगता है कि अभी तक न मेरी संगीत की तालीम पूरी हुई है और न ही मैं अच्छा संगीत दे सका हूं’ और यही बात दुनिया को कहते हुए 86 वर्ष की उम्र में 5 मई, 2006 को नौशाद ने अंतिम सांस ली. नौशाद का नाम आज भी और कल भी उनके संगीतों में अमर रहेगा. जागरण जंक्शन मंच नौशाद जैसे संगीतकारों को इस लेख के माध्यम से तहे दिल से श्रद्धांजलि देता है.

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