‘न कोई उमंग है, न कोई तरंग है
मेरी जिंदगी है क्या, एक कटी पतंग है
सपनों के देवता क्या, तुझको करूं मैं अर्पण
पतझड़ की मैं हूं छाया, मैं आंसुओं का दर्पण
यही मेरा रूप है यही मेरा रंग है
मेरी जिंदगी है क्या, एक कटी पतंग है’
इस गीत को सुनने के बाद ‘कटी पंतग’ फिल्म की बेहतरीन कहानी तो याद आती ही है पर साथ ही आशा पारेख का वो दर्द भरा अभिनय भी याद आ जाता है जिसे दर्शक आज तक भूल नहीं पाए हैं.
आशा पारेख ने जिन्दगी को हमेशा ही हंसते हुए जिया है. आशा पारेख का जन्म 2 अक्टूबर, 1942 को गुजरात में हुआ. आशा पारेख एक मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार से संबंध रखती हैं और उनके पिता हिंदू तथा माता मुसलमान थीं.
अशा का बचपन का सपना
आशा पारेख नृत्य की तो दीवानी थीं ही पर बचपन में उन्हें डॉक्टर बनने का भी शौक था. लेकिन आशा पारेख का दिल इतना नाजुक था कि एक बार उन्होंने एक व्यक्ति का खून निकलते देखा तो उसी से भयभीत हो गईं और यह फैसला लिया कि वो डॉक्टर नहीं बनेंगी. कहते हैं कि जो भी होता है अच्छे के लिए होता है इसलिए आशा पारेख का डॉक्टर ना बन पाने के कारण ही हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री को आशा पारेख जैसी अदाकारा मिल पाई.
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आशा की नृत्य से सच्ची मोहब्बत
आशा पारेख ने भले ही किसी से शादी नहीं की पर उन्होंने एक चीज को दीवानों की तरह प्यार किया. आशा पारेख को नृत्य से दीवानगी की हद तक प्यार था. आशा पारेख को बचपन से ही नृत्य का शौक था. बचपन में शौक-शौक में नृत्य करने वाली आशा पारेख ने पण्डित गोपीकृष्ण तथा पण्डित बिरजू महाराज से भरत नाट्यम में कुशलता प्राप्त की थी. फिर क्या था उनका नृत्य देख ऐसा लगता था कि कोई मोरनी अपनी धुन में मगन होकर नाच रही हो. आशा पारेख के नृत्य की कला सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं रही बल्कि अमेरिका के लिंकन थिएटर में भारत की ओर से वो पहली बार नृत्य की प्रस्तुति करने वाली महिला बनीं.
स्टार वाली बात नहीं
स्कूल के एक कार्यक्रम में फिल्मकार बिमल राय ने आशा को फिल्म बाप-बेटी में एक छोटी भूमिका दी थी, लेकिन फिल्मकार विजय भट्ट ने अपनी फिल्म गूंज उठी शहनाई में आशा को यह कहकर मना कर दिया कि उसमें ‘स्टार मटेरियल’ नहीं है.
आशा पारेख के गॉड फादर
आशा के कॅरियर को संवारने-निखारने का काम डायरेक्टर नासिर हुसैन ने किया. वे उनकी लाइफ में एक तरह से गॉड फादर की तरह आए. वह उन दिनों शशधर मुखर्जी की फिल्म ‘दिल दे के देखो’ के लिए नई तारिका की तलाश में थे.
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जिस दिन बात फाइनल हुई, उस दिन आशा का सत्रहवां जन्मदिन था. यह फिल्म जन्मदिन का गिफ्ट बनकर उनके जीवन में आई. 1959 से लेकर 1971 तक यानी कि दिल दे के देखो से लेकर कारवां फिल्म तक नासिर हुसैन गीत-संगीत से भरपूर रोमांटिक लाइट मूड की फिल्में बनाते रहे और आशा ने उनकी फिल्मों में मस्ती के साथ काम किया.
आशा पारेख को हिन्दी सिनेमा में उनके बेहतर अभिनय के लिए कई अवार्ड दिए गए. नासिक अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव के समापन समारोह में फिल्मी कलाकार धर्मेन्द्र और आशा पारेखको सम्मानित किया गया. आशा पारेखको फिल्म ‘कटी पतंग’ के लिएफिल्म फेयर अवार्ड भी दिया गया. साल 2002 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड आशा पारेखको दिया गया और साल 2006 में उन्हें अंतरराष्ट्रीय भारतीय फिल्म अकादमी सम्मान भी दिया गया.
सच तो यह है कि आशा पारेख के अभिनय की सराहना करने के लिए उन्हें दिया जाने वाला कोई भी अवार्ड छोटा है क्योंकि उन्होंने हिन्दी सिनेमा को बेहतरीन अभिनय से परिपूर्ण ऐसी फिल्में दी हैं जिसके बल पर हिन्दी सिनेमा की फिल्मों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तारीफ की जाती है.
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