अमरीश पुरी हिन्दी सिनेमा के मशहूर खलनायक रहे इसके बावजूद भी उनकी आंखें एक मौके की तलाश करती रहीं. यह मौका उन्हें अपने अभिनय की कला को साबित करने के लिए नहीं चाहिए था क्योंकि फिल्मों में खलनायक का किरदार उन्होंने जिस तरीके से निभाया उसके बाद उनके अभिनय पर अंगुली उठाने का दम किसी में नहीं था.
अमरीश पुरी की आंखों में पल रहे सपने का नाम था ‘बॉलीवुड का सुपरस्टार नायक बनना’ और यह सपना शायद उनके भीतर तब से था जब उन्होंने हिन्दी सिनेमा में कदम रखा था. फिल्मों की दुनिया वास्तव में अद्भुत दुनिया है क्योंकि यहां आपके सपने किस रूप और किस शर्त के साथ पूरे होंगे, इस बात का कयास लगाना भी मुश्किल है. शाहरुख खान ने जब बॉलीवुड में एंट्री ली थी तो उन्हें लगा था कि दर्शक केवल उन्हें खलनायक के रूप में ही देख पाएंगे और वो कभी नायक के रूप में दर्शकों के सामने नहीं आ पाएंगे लेकिन जब ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ सिनेमाघरों में रिलीज हुई तो शाहरुख खान एक रोमांटिक हीरो के रूप में दर्शकों के सामने आए. अमरीश पुरी की किस्मत शाहरुख खान जैसी नहीं थी. उन्हें दर्शकों ने बॉलीवुड के खलनायक के रूप में ही अपनाया और उनका नायक बनने का सपना अधूरा ही रह गया. अमरीश पुरी के इस सपने को इसलिए याद किया जा रहा है क्योंकि आज ही के दिन 12 जनवरी को हिन्दी सिनेमा ने एक बेहतरीन अभिनेता खो दिया था.
अमरीश पुरी के बॉलीवुड का नायक बनने के सपने को हमने एक शब्द द्वारा पूरा करने की कोशिश की उनके नाम के आगे अभिनेता लगाकर क्योंकि अमरीश पुरी भले ही बॉलीवुड के खलनायक हों पर अपने अभिनय की कला को उन्होंने बेहतरीन रूप में सिद्ध किया और अभिनय की कला को दर्शकों के सम्मुख सिद्ध करने वाला हर कलाकार एक अभिनेता है.
अमरीश पुरी ने अपने फिल्मी कॅरियर की शुरुआत साल 1970 में आई फिल्म ‘प्रेम पुजारी’ से की. फिल्म में उनकी भूमिका काफी छोटी थी, जिसकी वजह से उनकी प्रतिभा को नहीं पहचाना जा सका. वह फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ में पहली बार बड़ी भूमिका में नजर आए. इस फिल्म में वह पहली बार अमिताभ के साथ नजर आए. अमरीश पुरी का सफर साल 1980 के दशक में यादगार साबित हुआ. इस पूरे दशक में उन्होंने बतौर खलनायक कई बड़ी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी. साल 1987 में शेखर कपूर की फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ में मोगैंबो की भूमिका के जरिए सभी के जेहन में छा गए. इस फिल्म का एक डायलॉग ‘मोगैंबो खुश हुआ’ आज भी सिनेमा प्रेमियों के जेहन में ताजा है और इसी डायलॉग के साथ अमरीश पुरी को चाहने वाले उन्हें याद किया करते हैं.
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