इत्तेफाकन ऐसा होता है कि आपकी जन्मतिथि आपकी मुत्युतिथि बन जाती है. अपने जीवन की सांसों को लेते समय व्यक्ति कभी भी इस बात का विचार अपने मन में नहीं लाता है कि जिस दिन उसने दुनिया में कदम रखने के साथ ही प्रथम बार सांस ली उसी तारीख को वो अपनी अंतिम सांस लेगा. प्राण जिन्हें हिन्दी सिनेमा का विलेन माना जाता है उन्होंने अपनी जन्म तारीख के दिन ही अपनी अंतिम सांस ली थी.
प्राण का जन्म 12 फरवरी 1920 को हुआ और 12 जुलाई 2013 को उन्होंने अंतिम सांस ली. भले ही प्राण की जन्मतिथि पूरी तरह उनकी मृत्युतिथि से मेल नहीं खाती है पर यदि ध्यान से देखा जाए तो तारीख एक ही है. 12 तारीख जिस तिथि को प्राण का जन्म हुआ और उसी तारीख को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
बेहतरीन अदाकारी से खलनायकी के अलग-अलग तेवरों के जरिए दर्शकों में दहशत की सिहरन भर देने वाले सदी के खलनायक प्राण ने अभिनेता बनने के बारे में ख्वाब में भी नहीं सोचा था. वह तो मैट्रिक का इम्तिहान पास करने के बाद स्टिल फोटोग्राफर बनने का सपना लिए हुए दिल्ली में फोटोग्राफी सीखने में मशगूल थे. उसी दौरान कंपनी ने लाहौर में अपना कार्यालय खोला तो प्राण को वहां भेजा गया. एक दिन पान की दुकान पर उनकी मुलाकात कहानीकार वली मोहम्मद से हुई. वली मोहम्मद ने प्राण से कहा कि हम ‘यमला जट’ नाम से एक पंजाबी फिल्म बना रहे हैं और उसमें एक किरदार की भूमिका तुम पर पूरी तरह फिट बैठती है. पहले तो प्राण ने इस बात को हल्के में लिया लेकिन बाद में वली मोहम्मद के कहने पर फिल्म में बतौर खलनायक काम करना स्वीकार कर लिया. इसके बाद प्राण ने लगभग चार दशक तक खलनायकी की लंबी पारी खेली और दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया.
प्राण की चर्चित भूमिकाओं वाली फिल्में हैं साल 1949 में आई फिल्म ‘बड़ी बहन’, साल 1954 ‘बिराज बहू’, मधुमती (1958), छलिया (1960), जिस देश में गंगा बहती है (1967), हाफ टिकट (1962), कश्मीर की कली (1964), शहीद (1965), उपकार (1967), ब्रह्मचारी (1967), अधिकार (1971), बाबी (1973), जंजीर(1973), मजबूर (1974), कसौटी(1974), अमर अकबर एंथनी (1977), डान (1978), कालिया (1981), शराबी (1984) आदि हैं. प्राण को तीन बार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला. पहली बार ‘उपकार’, दूसरी बार ‘आंसू बन गए फूल’ और तीसरी बार ‘बेईमान’ फिल्म के लिए उन्हें यह पुरस्कार दिया गया. साल 1997 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट का पुरस्कार भी मिला. साल 2013 में उन्हें ‘दादा साहब फाल्के’ अवार्ड से भी सम्मानित किया गया.
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