2011 में आई फिल्म डर्टी फिक्चर का वह सदाबहार डायलॉग किसको नहीं याद है जिसमें फिल्म अभिनेत्री विद्या बालन अपने किरदार सिल्क की भूमिका में कहती हैं “- फिल्में सिर्फ तीन चीजों की वजह से चलती है…. एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट…… और मैं एंटरटेनमेंट हूं”. फिल्म तो हिट हुई, साथ ही इस डायलॉग ने भी अपने हिस्से की काफी वाह वाही बटोरी.
फिल्म जानकारों की मानें तो फिल्म डर्टी फिक्चर की कामयाबी के पीछे उसका केवल ‘एंटरटेनमेंट’ कलेवर ही नहीं था बल्कि फिल्म का प्रजेन्टेशन और उसकी कहानी भी थी. कम बजट की इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पे तो झंडे गाड़े ही साथ ही इसने उन निर्माताओं और निर्देशकों को भी रास्ता दिखाया जो यह मानकर चल रहे थे कि फिल्म केवल बड़े स्टारों की वजह से चलती है.
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इस फिल्म के बाद कई ऐसी फिल्मों ने बॉलीवुड में दस्तक दिया जो अपने मामूली बजट और दमदार स्टोरी की वजह से दर्शकों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब रहीं. इनमें कहानी, पान सिंह तोमर, विक्की डोनर और इशकजादे जैसी प्रमुख फिल्म रहीं.
इशकजादे: बजट 25 करोड़, कमाई 40 करोड़
कहानी: बजट 8 करोड़, कमाई 75 करोड़
विक्की डोनर: बजट 5 करोड़, कमाई 45 करोड़
पान सिंह तोमर: बजट 4.5 करोड़, कमाई 20 करोड़
काई पो चे: बजट 12 करोड़, कमाई 29 करोड़
यह आंकड़े बताते हैं कि फिल्मों को चलाने के लिए ना किसी स्टार की जरूरत है और ना ही बड़ी और मोटी रकम की. अगर आपके पास अच्छी स्टोरी है और फिल्म को प्रजेंट करने का तरीका है तो आप किसी भी लो बजट फिल्म को अच्छी ओपनिंग दिला सकते हैं. फिल्म डर्टी फिक्चर के बाद इस तरह के प्रयोग काफी किए गए. हाल की कुछ फिल्मों ने भी कमाई के मामले में उम्मीद से ज्यादा प्रदर्शन किया है.
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हाईवे: बजट 18 करोड़, कमाई 27 करोड़
यारियां: बजट 19 करोड़, कमाई 40 करोड़
क्वीन: बजट 17 करोड़, कमाई 48 करोड़ (पर्दे पर अभी भी है)
रागिनी एमएमएस-2: बजट 32 करोड़, कमाई 32 करोड़ (पर्दे पर अभी भी है)
ऐसा नहीं है कि अच्छी कहानियों के साथ छोटे बजट की फिल्में हाल के वर्षों में ज्यादा पसंद की जा रही हों. पहले भी छोटे बजट की फिल्में बनती रही हैं, लेकिन उनमें से जिनकी कहानी सबसे ज्यादा असरदार साबित होती थी वहीं फिल्में ज्यादा चलती थीं. आज इंटरनेट और मीडिया ने सब कुछ आसान बना दिया है. कनेक्टिविटी की वजह से लोग आज जान पा रहे हैं कि कौन सी फिल्म उनके लिए फैसा वसूल साबित हो सकती है. कहानी के साथ-साथ अगर प्रजेंटेशन में दम है तो अच्छी स्ट्रैटजी के साथ कम से कम बजट की फिल्में भी चलाई जा सकती हैं.
आज बदलते हिंदी सिनेमा के इस दौर में अच्छी कहानी के साथ छोटे बजट की फिल्में दर्शकों का मनोरंजन तो करती ही हैं साथ ही उन नए युवाओं को भी मौका देती हैं जो फिल्मों में काम तो करना चाहते हैं लेकिन बड़ी कमर्शियल फिल्मों में खुद को एडजस्ट नहीं कर पाते. कम बजट की फिल्मों का इस तरह का प्रदर्शन आगे कई तरह की संभावनाओं को मजबूती प्रदान करेगा. तब आने वाले वक्त में हम शायद उस संस्कृति को खत्म होता देखें जहां एक फिल्म स्टार एक फिल्म के लिए मोटी रकम लेता है. क्योंकि निर्माता को जब एक छोटी बजट की फिल्म से ही प्रॉफिट मिल रहा हो तो वह बड़े और महंगे स्टारों के पास क्यों जाना चाहेगा.
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