जिस तरह की गुणवत्ता आप फिल्मों में देखते हैं उसके पीछे कलाकारों की बेहिसाब मेहनत होती है. अपने सीन को वास्तविक बनाने के लिए पुराने जमाने से ही कलाकार किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते थे.
हरिश्चन्द्र की नायिका
भारत की पहली कथा फिल्म राजा हरिश्चन्द्र की नायिका के लिए दादा फालके एक लड़की की तलाश में थे, पर समाज में उस समय लड़कियाँ परदे में रहती थी. जब दादा को खोजने पर भी कोई लड़की नहीं मिली तो वे वेश्याओं की कोठी पर गए. वहाँ पैसे, अच्छा खाना, कपड़े आदि का लालच देने के बाद भी जब कोई वेश्या फिल्म में काम करने को राजी नहीं हुई तो एक वेटर को इस फिल्म में लिया गया जिसका हाव-भाव औरतों से मिलता था.पुरूष होने के कारण हर चार घंटे में उसके चेहरे पर बालों की खूटियाँ दिखने लगती थी. इसलिए सेट पर ही एक नाई की व्यवस्था की गई जो हर चार घंटे पर उसके दाढ़ी बनाता था ताकि उसके चेहरे पर लड़की जैसी चिकनाहट बनी रहे. इस तरह भारत की पहली कथा फिल्म में महारानी का किरदार अण्णा सालुंके नाम के एक पुरूष ने निभाया.
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सिमी गरेवाल के पूरे शरीर पर कालिख पोत दी गई
सत्यजीत रे की फिल्म अरण्येर दिनरात्रि में एक ऐसी लड़की चाहिए थी जो आदिवासी या संथाली लड़की जैसी दिखती हो, पर जब वैसी कोई लड़की नहीं मिली तो आदिवासी जैसी दिखने के लिए फिल्म की नायिका सिमी गरेवाल के पूरे शरीर पर कालिख पोत दी गई.’
मरने वाला सीन
दादामुनि या अशोक कुमार राखी फिल्म में अभिनय कर रहे थे. इसके एक सीन में उन्हें मरना था. वो कोशिश करने के बाद भी मौत से पहले की घरघराहट वाला वास्तविक प्रभाव नहीं ला पा रहे थे, तब निर्देशक ने उन्हें फ्रिज का बीस पच्चीस गिलास पानी पीने को कहा. दादामुनि ने वो पानी पी लिया. इससे उनको बुखार आ गया. उनके गले के टिश्यू खराब हो गए और उन्हें जीवन भर के लिए साँसों की बीमारी हो गई.
क्यो बैठे भिखारी के साथ दिलीप
उन्होंने दिलीप कुमार को किसी अंधे-भिखारी के साथ रहने को कहा. वो एक भिखारी के पास में रोज जा कर बैठने लगे. तब जाकर उन्होंने उस फिल्म में अंधे भिखारी का किरदार निभाया.
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राखी को पड़ी थप्पड़
जब तक राखी कुछ समझ पाती तब तक निर्देशक ने उन्हें एक झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया. राखी को रोना आ गया और शॉट्स भी पूरा हो पाया.
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