नागालैंड की प्रमुख जनजातियों में से एक चाखेसांग अपनी संस्कृति और विशिष्ट पहचान के लिये दुनिया भर में मशहूर है. चाखेसांग जनजाति की प्राचीन परम्परा इसके अस्तित्व को महत्तवपूर्ण बनाती है. हालांकि, समय के आगे खिसकने के साथ इस जनजाति के लोकगीत पीछे दरकते गये.
इसके बावजूद चाखेसंग की युवाओं में अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और समृद्ध करने का हौसला है. नागालैंड के इन चार सहोदरों ने अपनी जनजाति की मृतप्राय हो रही लोकगीतों को नव-जीवन देने की कोशिशें की हैं. चोकरी में गाने वाली इन टैटसियो बहनों ने अपनी माँ मर्सी से लोकगीतों को गाना सीखा. गायन को मधुर और संगीतमय बनाने के लिये इन्होंने ताति नामक वाद्य यंत्र बजाना सीखा. इन्होंने गिटार, वॉयलिन और अन्य वाद्य यंत्रों को भी बजाना सीखा है जिसका ये अपने गानों में बख़ूबी प्रयोग करती हैं.
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इन चार सहोदरों में 28 वर्षीया अज़ि, 22 बसंत देख चुकी कुवैलु, 19 वर्षीया अल्युने और 26 वर्ष का उनका भाई म्हासैवै शामिल है. हालांकि, इन चारों का सामूहिक प्रदर्शन दूरदर्शन पर दिखाये गये एक कार्यक्रम से मिली पहचान के बाद शुरू हुआ; जब छोटी बहनें कुवैलु और अल्युने अपने से बड़ी बहन और भाई के साथ मिलकर सांस्कृतिक कार्यक्रम में शिरकत करने लगी.
नागालैंड की टैटसियो बहनों ने ध्वनिक गानों पर आधारित अपनी पहली एलबम भी जारी की है. उन्होंने इसका नाम “लि: चैप्टर वन: दी बेगिनिंग इन 2011” रखा है. “लि” चोकरी नागाओं की भाषा है जिसका आशय लोकगीतों से है. लौकिक मज़मून वाले उनके गाने प्रेम, जीवन और दोस्ती के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं.
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365 दिनों में सात त्योहार मनाने वाली चाखेसांग जनजाति की इन सहोदरों की विशेष बात ये है कि, उनके सामूहिक प्रदर्शन के समय अगर एक बहन किसी कारण से उपस्थित नहीं रह पाती तो भाई म्हासैवै को लड़की की वेशभूषा पहनाकर मंच पर लाया जाता है.Next……
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