मुझे लाजवाब लगी बल्कि इसके बोल भी शानदार हैं. यह गाना हिट तो खूब हुआ है लेकिन कुछ संगठनों ने इस गाने पर आपत्ति भी जताई. वे लोग जिनकी धार्मिक भावनाएं अक्सर बात-बात पर आहत हो जाती है, उन्होंने आपत्ति जताई है कि देवी दुर्गा अपने भक्तों तक पहुंचने के लिए ई-मेल और फेसबुक जैसी आधुनिक तकनीक का प्रयोग कैसे कर सकती हैं. खैर यह पहली बार नहीं है जब भक्त और भगवान के रिश्ते को आधुनिक अंदाज में पेश किया गया है.
बीडी जलइले से ज्योति जलइले तक…
इससे पहले 2010 में आई फिल्म ‘अतिथि तुम कब जाओगे’ में एक भजन ‘ज्योति जलाइले’ पर भी कुछ लोगों ने नाक-भौं सिकोड़ी थी. सुखविंदर सिंह द्वारा गाया गया यह भजन फिल्म ‘ओमकारा’ के एक आइटम नंबर ‘बीड़ी जलाइले’ के तर्ज पर है. गुलजार द्वारा लिखे गए गीत बीड़ी जलाइले को बिपाशा बासु के ऊपर बेहद हॉट तरीके से फिल्माया गया था. कई ऐसे भी मॉर्डन भजन हैं जिन्हें क्षेत्रीय भाषाओं में रिकॉर्ड किया गया लेकिन वे पूरे देश में मशहूर हुईं.
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ऐ गणेश के पापा
1997 में आई भोजपुरी भजन ‘ऐ गणेश के पापा’ बेहद लोकप्रिय हुआ था. भोजपुरी गायिका कल्पना द्वारा गया यह भजन पूरे उत्तर भारत में मशहूर हुआ था. आज भी धार्मिक उत्सवों में यह भजन जरूर बजता है. इस भजन में देवी पार्वती और शंकर भगवान के बीच हो रही एक काल्पनिक वार्तालाप के साथ गाया गया है. देवी पार्वती शंकर भगवान को गणेश के पापा कहकर सबोंधित करती हैं और उनके लिए पत्थर पर भांग पीसने में अपनी असमर्थता जताती हैं. इस गीत से नारीवादियों को कुछ समस्या हो सकती है लेकिन इसका स्त्री विमर्श वर्तमान लेख के दायरे से बाहर है.
राधा-कृष्ण की हरियाणवी लव स्टोरी
फिल्म गुड्डू-रंगीला में गुड्डू और रंगीला दो ऑर्केस्ट्रा गायक हैं जो हरियाणा में रहते हैं और जागरण आदि धार्मिक समारोहों में ‘माता का ईमेल’ गाना गाते हैं. कुछ साल पहले एक हरियाणवी भजन पूरे हिन्दी बेल्ट में हिट हुआ था. इस भजन के बोल कुछ इस प्रकार थे- अरे रे मेरी जान है राधा, तेरे पे कुर्बान में राधा…रह न सकूंगा तुझसे दूर मैं… इस गीत में श्रीकृष्ण राधा से अपने प्रेम का इजहार कर रहे हैं. अगर कुछ देर के लिए यह मान लिया जाए कि इस गीत के संवाद श्रीकृष्ण राधा के लिए नहीं कह रहे हैं तो यह गीत भजन की बजाए किसी ऐसे बॉलीवुड गीत की तरह लगता है, जिसमें नायक नायिका के साथ फ्लर्ट कर रहा है.
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भक्ति आंदोलन से अबतक
भजन के नाम पर जब कभी इस तरह के गीत गाए जाते हैं तो कुछ लोगों को आपत्ति होती है लेकिन यह भी सच है कि ऐसे गीत हिट भी खूब होते हैं. दरअसल जब भगवान को उस तरह से पेश किया जाता है जैसे साधारण लोग रहते हैं और व्यवहार करते हैं तब लोग इस तरह की कल्पना से ज्यादा जुड़ाव महसूस कर पाते हैं चाहे वह कोई भी दौर रहा हो. चाहे वह तुलसीदास का गीत ‘ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया’ हो या मीराबाई का गीत- ‘मैं तो सांवरे के रंग राची…साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू लोक-लाज तजि नाची…’ हो.
‘गणेश के पापा’ और ‘माता का ईमेल’ जैसे गीत इस दौर के हैं लेकिन भारत में भक्ति आंदोलन के समय से ही ऐसे गीत गढ़े जाते रहे हैं. ये बात अलग है कि आधुनिक युग में ऐसे गीत रचने के पीछे भक्ति भाव कम और पैसा कमाने का मकसद अधिक होता है. Next…
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