ज्यादातर लोगों का मानना है कि बॉलीवुड में ज्यादातर मसाला फिल्में बनाई जाती है जिसका मकसद ज्यादा से ज्यादा बिजनेस करना होता है. लेकिन बॉलीवुड के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलेगा कि बॉलीवुड में लिंक से हटकर फिल्में भी बनती है. जिसे देखने के लिए दर्शकों का एक खास वर्ग लम्बे अर्से से इंतजार करता है. वहीं दूसरी तरफ दर्शकों का एक वर्ग ऐसा भी है जो साइंस फिंक्शन पर आधारित फिल्मों को देखना पसंद करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि साइंस पर आधारित फिल्में देखने के शौकीनों में भारत में बेशक से कम ही लोग हो लेकिन दुनिया भर में विज्ञान पर आधारित फिल्मों की सबसे ज्यादा डिमांड है.
इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1902 में सबसे पहले साइंस फिंक्शन रिलीज की गई थी. फ्रेंच निदेशक जॉर्ज मेलिएस की बनाई इस फिल्म का नाम था ‘ए ट्रिप टू मून’. फ्रेंच भाषा में बनी इस मूक फिल्म का निर्देशन किया था जॉर्ज मेलिएस ने. यह फिल्म सिनेमा के इतिहास में साइंस फिक्शन फिल्मों की सूची में पहले नंबर पर आती है. इसमें खगोलशास्त्रियों के एक समूह की कहानी दिखाई गई थी जो चांद की यात्रा पर जाते हैं. इनके पास तोप के गोलों की शक्ति से चलने वाला एक स्पेस कैप्सूल होता है जिससे वे चांद पर पहुंचकर उसकी सतह पर रिसर्च करते हैं. लगभग सोलह मिनट की इस ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म को उस समय एक लंबी फिल्म माना गया था.
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बाद में फिल्म को हाथ से भरे हुए रंगों से सजी रंगीन फिल्म के रूप में भी बाजार में लाया गया. इसके अलावा फिल्म में चांद पर रहने वाले सेलेनाइट्स नाम के अंडरग्राउंड समूहों से टक्कर को भी बखूबी पेश किया गया. अपनी यात्रा के बाद खगोलशास्त्री अपने यान के साथ धरती पर समुद्र में उतर जाते हैं और आते समय अपने साथ चांद के एक निवासी सेलेनाइट को भी ले आते हैं. सन 2002 में यह फिल्म यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज फिल्म का दर्जा पाने वाली पहली फिल्म बनी थी.
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