‘उस गली ने ये सुन के सब्र किया, जाने वाले यहां के थे ही नहीं’
सोशल मीडिया पर शेरों-शायरी करने वाले भी बहुत लोग हैं. कई बार ये देखने को मिलता है कि किसी मशहूर शायर की शायरी चुराकर लोग अपने नाम से कॉपी-पेस्ट कर लेते हैं. कुछ भी हो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आज के दौर में भी युवाओं को शेरों-शायरी खूब भाती है.
ऊपर लिखा शेर है मशहूर शायर, विद्धान जॉन एलिया का. जिनका जन्म भारत में हुआ और बाकी जिंदगी पाकिस्तान में गुजरी. आज के दिन जॉन दुनिया को अलविदा कह गए थे. आइए, जानते हैं जॉन की जिंदगी के कुछ किस्से.
8 साल की उम्र में पहली शायरी लिखी
14 दिसम्बर 1931 को जॉन का जन्म हुआ यूपी के अमरोहा में. पांच भाईयों में सबसे छोटे जॉन एलिया. शुरु से लिखने-पढ़ने का शौक था. मन की बातों को लयबद्ध तरीके से लिखते, कहते. 8 साल की उम्र में जॉन ने अपनी पहली शायरी लिखी थी.
भारत छोड़कर जाना पड़ा पाकिस्तान
कहा जाता है कि जॉन जब छोटे थे, तो घंटों बैठकर मिट्टी को निहारा करते थे. उन्हें अपने अमरोहा की मिट्टी बहुत पसंद थी. लेकिन इस मिट्टी से दूर होना लिखा था और बंटवारे के वक्त उन्हें पाकिस्तान जाना पड़ा. शुरुआत में उन्हें समझ ही नहीं आया था कि मिट्टी इतनी मिलती-जुलती है, तो आखिर दूसरा देश क्यों और कैसे आ गया?
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प्यार हुआ, दिल टूटा और गम में डूब गए
जाहिदा हिना, जॉन की मुहब्बत. एक उर्दू पत्रिका ‘इंशा’ में काम करने के दौरान उनकी मुलाकात जाहिदा से हुई. कुछ मुलाकाते हुईं और प्यार हो गया. दोनों ने निकाह किया. तीन बच्चों के माता-पिता बने, लेकिन रिश्ता ज्यादा चल नहीं पाया और 1984 में तलाक हो गया.
इसके बाद जॉन गम में डूब गए और उनकी कहानी शेरों-शायरी में दिखने लगी.
उनकी लिखी हुई यानी, गुमान, लेकिन और गोया किताबे छपी. सारी किताबें हिट रही. कहा जाता है कि कुछ किताबें तो इतनी पसंद की गई कि कुछ दिनों में ही बड़ी तादाद में बिक गई.
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